जवान प्रोफेसर की गुलाबी चुत मारी – Hindi Sex Story

दोस्तो आज मैं आपको अपनी ही एक कहानी सुनाता हूँ।

यह कहानी मंजू सिंह की है, जिसकी कहानियाँ
मंजू सिंह की चूत चुदास
और
मंजू सिंह की मॉल में ज़बरदस्त चुदाई, आप पहले ही पढ़ चुके हैं।

मंजू मेरी मित्र है, बहुत मस्त औरत है, मेरी और अपनी कहानियों में औरों को मज़े देती है पर मुझे नहीं!
मैंने सोचा कि एक कहानी लिख कर मैं भी अपने दिल के अरमान पूरे कर लूँ।
कहानी काल्पनिक है।
बात कोई 2 साल पुरानी है, तब मेरी ड्यूटी बतौर चेकिंग इंस्पेक्टर, दिल्ली के एक कॉलेज में लगी।
यह लड़कियों का कॉलेज था और बी ए के इम्तिहान में मेरी ड्यूटी लगी थी, कॉलेज के ही हॉस्टल में रहने का इंतजाम था।

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हम करीब 15 प्रोफेसर अलग अलग कोलेजों से वहाँ आए थे।
रात को तो खाना खाते, एक दूसरे से मिलते मिलाते ही समय बीत गया।

अगले दिन पहला पेपर था, इंगलिश का… मैं निर्धारित समय से भी काफी पहले तैयार होकर पहुँच गया।
कॉलेज में प्रिंसीपल ने हमें सभी गाइड लाइंस दी, हम लोग अपने अपने कमरों में चले गए।

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मेरे साथ जो मैडम थी, उसका नाम मंजू सिंह था, कोई 30 एक साल की होगी, बहुत ही सुंदर, सेक्सी, लाजवाब औरत!
और मैं ठहरा 46 साल का!
बेशक मैं भी खुद को अच्छी तरह से मेनटेन करके रखता हूँ, मगर उम्र तो अपना असर दिखाती ही है।
अब मुझसे 16 साल छोटी, तो ज़्यादा जवान और हॉट लगेगी ही।

थोड़ी देर में कॉलेज में गहमा गहमी शुरू हो गई, स्टूडेंट्स आने लगी।
मैं खिड़की के पास खड़ा बाहर देख रहा था, बाहर क्या मैं तो चुपचाप लड़कियां ताड़ रहा था, किसी की आँखें, किसी के गाल, किसी का रंग किसी का रूप।
और चूचे और गांड तो सभी मर्द देखते हैं, इस लिए कहने की कोई ज़रूरत ही नहीं।

प्रोफेसर मंजू ने सभी पेपर्ज़ ठीक से करके रख दिये।

जब स्टूडेंट्स रूम में आने लगे तो मैंने सबके रोल नंबर चेक किए और सबको उनकी सीट पर बैठने को कहा।

कुछ ही मिनट में पूरा कमरा भर गया, 45 स्टूडेंट्स थे रूम में, सब की सब लड़कियाँ, गर्ल्स कॉलेज जो था।
तो इस हिसाब से 46 चूतों 92 चूचों के बीच मैं अकेला लंड था।

वैसे ही मन में ख्याल आया कि अगर ये सब अभी मुझे कह दें ‘सर पेपर को छोड़ो, आप हमें चोदो…’ तो कितनी लड़कियों को मैं चोद सकता हूँ।

फिर सोचा, लड़कियां तो सब 18-20 साल की हैं, प्रोफेसर मंजू सबसे अलग सब से शानदार लग रही थी, अगर यह मान जाए तो सबसे पहले इसको चोदूँ, क्योंकि हो सकता है लड़की कुँवारी हो और उसे दर्द हो, शर्म आए, घबराए या कोई और तकलीफ हो।
मगर यह प्रोफेसर मंजू तो शादीशुदा है, खूब चुदी होगी, और अगर इसका दिल मान गया तो देने में भी हिचकिचाएगी नहीं।

मैंने फिर एक बार बड़े गौर से प्रोफेसर मंजू को देखा, वो स्टूडेंट्स को पर्चे बाँट रही थी।

कद करीब 5 फीट 5 या 6 इंच… बहुत बढ़िया कद था, मेरा अपना कद 5 फीट 10 इंच है, मतलब मेरे लिए बिल्कुल परफेक्ट!
गोरा साफ रंग, मुझे भी पसंद है, सुंदर नयन नक्श, जो पहली बार देखते ही मुझे भा गए, कंधों से नीचे तक कटे हुये बाल, जो उसने खुले छोड़ रखे थे।
करीब 36 साइज़ की ब्रेस्ट, मतलब बड़ा बोबा, जिसे हाथ में पकड़ के, चूस के मज़ा आ जाए।
साड़ी की बगल से झांक रही पतली बल खाती कमर, इसे तो मैं काट खाऊँ।
और उसके नीचे 38 साइज़ के विशाल गोल चूतड़।

मैंने बैठे बैठे ही आइडिया लगाया कि अगर इसके चूतड़ भरे हुये हैं, तो इसकी जांघें भी संगेमरमर जैसी साफ, सफ़ेद, और चिकनी होंगी।
उसकी बाजू पर कोई बाल नहीं था, अच्छी तरह से वेक्स की हुई थी, उससे मैंने आइडिया लगाया कि इसकी टाँगें भी वेक्स की होंगी, और हो सकता है, चूत भी साफ की हो।
पर अगर झांट भी हुई तो कोई बात नहीं, मैं फिर भी इसकी चूत चाट जाऊंगा।

सुर्ख लाल साड़ी में दूध से नहाई, प्रोफेसर मंजू को जितना मैं देखता उसे देखने की प्यार और बढ़ती।

जितनी देर में उसने स्टूडेंट्स को पर्चे बांटे, मैंने प्रोफेसर मंजू के बदन का एक एक इंच नाप लिया।
इसके अलावा क्लास में भी 4-5 लड़कियाँ ऐसी थी, जिनको देखना मुझे बहुत अच्छा लगा।
मगर मैं भी तो प्रोफेसर था, इसलिए घूर कर नहीं देख सकता था।

पर्चे बाँट कर जब प्रोफेसर मंजू सिंह वापिस आई तो मैं उठा और प्रश्न पत्र बांटने लगा।
इस दौरान मैंने सभी लड़कियों के पास जाकर उनको देखा।

‘अच्छा माल है दिल्ली में…’ मैंने सोचा।
45 तो क्या अगर इनमें से कोई भी आ जाए, तो ना तो मैं किसी को इंकार न करूँ!

खैर इम्तिहान शुरू हो गया, सब लड़कियां अपना अपना पेपर करने लगी। बीच बीच में कभी मैं तो कभी प्रोफेसर मंजू जा कर चेकिंग करती रही।

चेकिंग के दौरान ही मैंने देखा कि एक लड़की ने एक पूरी पर्ची लिख कर अपनी ब्रा के अंदर चिपका रखी है। उसने अपने दुपट्टे से अपना गला ढक रखा था और कमीज़ के गले में अपने हाथ का अंगूठा ऐसे फंसा रखा था, जैसे वैसे ही रखा हो, मगर वो बार बार अपनी शर्ट का गला आगे को करती और अपने ब्रा में रखी पर्ची से पढ़ कर पेपर पर लिख रही थी।

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मैंने जब उसे देखा तो कुदरती है कि उसके कमीज़ के अंदर भी मेरी निगाह गई।
32 साइज़ के दो गोरे दूध के कटोरे… एकदम साफ, कच्चे चूचे, जिन्हें शायद आज तक किसी मर्द का हाथ नहीं लगा।

सच में मेरा मन किया के इन चूचों को तो छू कर देखने को मिल जाए, तो मेरा आना सफल हो जाये।

मगर मैं तो अब उसकी शर्ट के अंदर हाथ नहीं डाल सकता था, तो मैं वापिस अपनी सीट पर गया, और धीरे से प्रोफेसर मंजू से बोला- मैडम, मुझे लगता है, यहाँ कुछ लड़कियां नकल मार रही हैं।

मैडम मंजू ने मेरी तरफ अपनी खूबसूरत गहरी आँखों से देखा और बोली- कौन सी लड़कियां?
मैंने चार्ट पर उन्हें उस लड़की का रोल नंबर दिखाया- यह लड़की नकल मार रही है।

प्रोफेसर मंजू ने पूछा- कैसे?
मैंने कहा- उसके पास पर्ची है, उसने छुपा रखी है।
प्रोफेसर मंजू ने मुझे पूछा- उसके पास कहाँ देखी आपने पर्ची?

अब सच कहूँ, पहली बार इतनी सुंदर औरत से बात करते हुये मुझे हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसके सामने ब्रा शब्द कह सकूँ। हो सकता है वो बुरा मान जाती कि आप यहाँ लड़कियों के ब्रा में घूरते फिरते हो।

मैंने कहा- जाने दो!
उस दिन मेरी प्रोफेसर मंजू सिंह से कोई खास बात नहीं हुई।

शाम अपने एक दो नए बने दोस्तों से मैंने बात की, मगर एक बात जो सबने कही, वो यह थी कि सारे कॉलेज में से सबसे सुंदर और सेक्सी प्रोफेसर मेरे साथ ड्यूटी पर थी, सब जैसे मुझसे ईर्ष्या कर रहे थे।
मगर मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है, आपके पास भी लेडी प्रोफेसर हैं, आप अगर चाहें तो उन पर ट्राई कर सकते हैं, मगर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।

चलो बात हंसी मज़ाक में चली गई।

अगले दिन प्रोफेसर मंजू सिंह गहरे हरे रंग की साड़ी पहन कर आई।
साड़ी शिफोन की थी, इसलिए उनका खूबसूरत ब्लाउज़ और इंच डेढ़ इंच का क्लीवेज भी दिख रहा था।

आज भी इम्तिहान के दौरान मैंने कुछ लड़कियों को वैसे ही नकल करते देखा, तो मैंने सोचा के मंजू से खुल कर बात कर ही ली जाये। तो पेपर खत्म होने के बाद मैंने प्रोफेसर मंजू से कहा- मैडम, यहाँ की लड़कियां नकल मारने में बड़ी तेज़ हैं, आज भी 2-3 लड़कियां नकल मार रही थी, मैंने खुद देखा।

‘अच्छा…?’ वो बड़ा हैरान हो कर बोली- कैसे नकल मार रही थी?
मैंने कहा- एक लड़की को तो मैंने खुद देखा, उसने अपने अंदर पर्ची छुपा रखी थी, और उससे देख कर पेपर में लिख रही थी।

‘कहाँ छुपाई थी पर्ची उसने?’ मंजू ने अपनी दोनों कोहनियाँ टेबल पे रखी और अपने दोनों बूब्स भी टेबल पर रख दिये, बूब्स टेबल पर रखने की वजह से ऊपर को उठ गए और उसका 1 इंच का सीधा सा क्लीवेज बढ़ कर पूरी दो गोलाइयों में बदल गया।

जब मैंने उसकी साड़ी के बीच में से उसका विशाल क्लीवेज देखा, तो सच कहूँ दिल किया के अभी उठ कर साली के बोबे दबा दूँ। मगर मैंने जान लिया कि इसे नकल के बारे में सब पता है और अब यह मुझे लालच दे रही है।
मैंने भी थोड़ी दिलेरी दिखाई और बोला- ज़्यादातर लड़कियां अपने ब्रा में परचियाँ छुपा कर लाती हैं और वहीं से देख कर नकल मारती हैं’

तो मेरे सामने ही प्रोफेसर मंजू ने अपने आँचल को थोड़ा नीचे किया और एक कागज़ का टुकड़ा अपने ब्रा में फंसा लिया और एक्टिंग से करके बोली- क्या बात करते हो सिंह साहब, इस तरह कैसे कोई लड़की अपने ब्रा में छुपी पर्ची से देख कर लिख सकती है, मुझसे तो देखा जा रहा?

मगर इस बहाने से उसने अपने बूब्स बहुत ही सुंदर दर्शन करवा दिये मुझे।
मैंने समझ लिया कि अब यह मुझसे उम्मीद रखेगी कि मैं अपना मुंह बंद रखूँ, मगर मुंह बंद रखने की भी कीमत होती है, और मुझे क्या कीमत चाहिए मैं वही सोच रहा था।

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प्रोफेसर मंजू ने भी बेशक मुझे एक्टिंग करके दिखा दी, मगर उसके बाद न तो उसने अपना आँचल ठीक किया, और न ही वो कागज़ का टुकड़ा अपने ब्लाउज़ से बाहर निकाला, जो थोड़ा सा बाहर को दिख रहा था और मेरा ध्यान बार बार उस तरफ ही जा रहा था।

मैंने अपना गला साफ किया और बोला- अगर उन लड़कियों ने कल को भी नकल मारी तो मैं कल सब को पकड़ के सब पर केस बना दूँगा।

मैंने तो तुक्का ही मारा था और मुझे पता भी था कि यह तुक्का लगेगा ज़रूर… और लग भी गया।
प्रोफेसर मंजू सिंह बोली- देखिये सिंह साहब, मुझे हमारी प्रिंसीपल साहब ने सख्त हिदायत दी है कि हमारे कॉलेज की कोई भी लड़की फेल नहीं होनी चाहिए, जैसे भी हों सब पास हों, अगर आप किसी पर केस बनाएगे तो हमारा सारा काम गलत हो जाएगा, आप अपनी कीमत बोलिए, और जो हो रहा है, चुपचाप देखिये बस!

यह तो ओपन ऑफर थी, मैंने पूछा- क्या कीमत दे सकती हैं आप, मुझे मुंह बंद रखने की?
वो बोली- सीधी बात करती हूँ, घुमा कर नहीं, जिस चीज़ पर आप उंगली रख देंगे, वो आपकी!
उसने अपना पर्स, उन लड़कियों के पेपर दोनों मेरे सामने रख दिये।
पर्स का मतलब था पैसा और पेपर्ज़ का मतलब था वो लड़कियां।

मैंने मन में सोचा अगर मैं उन लड़कियों में से किसी एक को चुनता हूँ, तो एक दो बार चोदने के बाद फिर तो वो नहीं मिल सकती, अगर मैं अपनी उंगली मंजू पर ही रख दूँ, तो यह मुझे आगे भी मिल सकती है।

मगर इससे कहूँ कैसे कि मैं तुम्हें चाहता हूँ तो मैंने उसका पर्स उठाया।
मेरे पर्स उठाते ही वो पीछे को सरक गई, जो बड़ा सा क्लीवेज बना था उसके ब्लाउज़ में ही कहीं गुम हो गया, हो सकता हो उसने सोचा होगा कि मैंने उसमें और पैसे में से पैसे को चुना।

मैंने प्रोफेसर मंजू का पर्स खोला, उसमे कुछ पैसे, मोबाइल, कार्ड वगैरह और भी बहुत सा समान था। मैंने उसके पर्स में से उसका ड्राइविंग लाइसेन्स निकाला और उसके सामने रख कर उसकी फोटो पे उंगली रख दी।

उसने बड़े ध्यान से देखा और मेरी तरफ मुस्कुरा कर बोली- यह क्या है?
मैंने कहा- अगर चुनने की बात है, तो कोई बेवकूफ ही होगा जो तुम में और पैसे में से पैसे को चुनेगा।

‘तो क्या आप मुझे चाह रहे हैं? सॉरी, मैं बिकाऊ नहीं हूँ!’ बड़े अंदाज़ से उसने कहा।
मैंने कहा- मैं आपको कहाँ खरीद सकता हूँ, मैं तो खुद को बेचना चाहता हूँ, अगर आप खरीदना चाहो।

वो हंस पड़ी और बोली- ओ के डन, जितने दिन आप यहाँ पर हो, आई एम एट यूअर सर्विस!
मैंने कहा- तो क्या थोड़ा सा ट्रेलर देख सकता हूँ आपकी सर्विस का?

वो बोली- एक मिनट!
वो उठी और रूम के बाहर सब देख कर आई, मैं भी उठ खड़ा हुआ, तो वो वहाँ से दौड़ कर आई, और आ कर मेरे गले से लग गई।

मैंने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया।
मुझसे उम्र में 16 साल छोटी एक औरत, गोरा चमकदार बदन, जिस्म के हर एक इंच से बरसता नूर, हर ऐंगल से सेक्सी, मेरी बाहों में झूल रही थी।

मैंने तो उसे बाहों में भरते ही उसके रसीले होंठों को चूम लिया।
उसने कोई विरोध नहीं किया।

एक लंबा सा चुम्बन लेने के बाद मैंने उसके दोनों बूब्स पकड़ कर दबाये, शायद जोश में कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से दबा दिये, उसके मुंह से हल्की चीख निकल गई- आह…
वो बोली- आराम से, दर्द होता है।

मैंने उसका आँचल हटा दिया और उसके दोनों बूब्स को पकड़ कर ऊपर को उठाया, गोरे, गुलाबी बूब्स की पूरी गोलाइयाँ अब मेरे हाथों में थी, मैंने उसके विशाल क्लीवेज को पहले चूमा फिर अपनी जीभ उसकी दोनों बूब्स की दरार में डाल कर चाट गया।

उसकी छातियों में लगे पाउडर का टेस्ट मेरे मुंह में आ गया और मेरा थूक उसके बोबों पर लग गया।

वो बोली- बस, अब सब कुछ यही कर लोगे, कुछ रात के लिए भी बचा कर रख लो।
मैंने कहा- आज रात को मिलोगी? कहाँ? कब?

वो बोली- सब्र करो, हर चीज़ का इंतजाम है।
मैंने उसे छोड़ दिया, वो अपनी साड़ी सेट करके बैठ गई।

हमने अपना काम निपटाया और चले गए।

मेरी तो रात ही होने को नहीं आ रही थी, बड़े बे मन से रोटी खाई।

करीब साढ़े नौ बजे मुझे फोन आया तो उसने बताया कि हॉस्टल नंबर 3 के रूम नंबर 16 में आ जाओ।

अब लड़कियों का हॉस्टल, मगर फिर भी मैं डरते डरते चल पड़ा।
वहाँ पहुँच कर मैंने दरवाजा खटखटाया, प्रोफेसर मंजू ने आ कर दरवाजा खोला।

उसने सुर्ख लाल रंग की साड़ी पहन रखी थी, और फुल मेकअप कर रखा था।
बस यूं समझ लो कि दुल्हन ही लग रही थी।

मैं रूम में गया तो अंदर दो लड़कियाँ और भी बैठी थी। एक तो वही थी, जो नकल मार रही थी।
उन दोनों लड़कियों ने मुझे नमस्ते की।
मुझे वहीं पर एक कुर्सी पे बैठाया गया।
पहले प्रोफेसर मंजू ने पूछा- क्या लोगे?
मैंने साफ साफ कह दिया- जिस चीज़ का वादा किया था तुमने, बस वहीं लूँगा।

प्रोफेसर मंजू बोली- एक बात और करनी है, इन दोनों लड़कियों को यह शक है कि आप इनको नकल करते पकड़ लोगे तो इनका भविष्य खराब हो जाएगा, इस लिए ये दोनों भी इसी लिए आई हैं कि अगर आप इनको चाहते हो तो ये भी आपकी पूरी सेवा करने को तैयार हैं।

मैंने सोचा ‘लो कल्लो बात…’ मैं तो एक की लेने आया था, यहाँ तो तीन तीन बैठी हैं, और वो भी देने को तैयार!

मैंने कहा- नहीं मैं इन्हे कुछ नहीं कहूँगा, ये जो चाहे करें, मुझे सिर्फ तुमसे मतलब है मंजू, हाँ अगर इनको इस बात का यकीन करना है के मैं सच में इनको कुछ नहीं कहूँगा, तो मैं इनके साथ थोड़ा बहुत खेल सकता हूँ, जैसे नज़राना वसूल करते हैं, पूरी पेमेंट तो मैं सिर्फ तुमसे ही लूँगा प्रोफेसर मंजू सिंह!

मैंने कहा तो वो दोनों लड़कियां उठ कर खड़ी हो गई, मंजू बोली- मैं कुछ पीने को लाती हूँ!
और वो चली गई।

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दोनों लड़कियां मेरे पास आ गई, मैंने पहले दोनों के बोबे दबा कर देखे, बिल्कुल मासूम, मुलायम, कच्चे बोबे। अभी19-20 साल की तो होंगी दोनों।

मैंने दोनों को अपनी एक एक जांघ पर बैठा लिया, दोनों को उनकी शर्ट ऊपर उठाने को कहा।
दोनों ने अपनी अपनी शर्ट ऊपर उठाई, नीचे से दोनों ने कोई ब्रा या अंडर शर्ट नहीं पहनी थी।

गोरे गोरे बोबे, मैंने चारों बोबे अपने हाथों से दबा कर देखे, फिर मुंह में लेकर चूसे।
दोनों लड़कियों ने खुद अपने हाथों से अपने बोबे मेरे मुंह में डाले और मैंने चूसे।

दोनों की सलवारों में हाथ डाल कर दोनों की जांघों को सहलाया, दोनों की चूतों को भी छू कर देखा।

मैंने कहा- इतने से दिल नहीं भरता, मुझे तुम दोनों की चूत चूसनी है, सलवार खोलो अपनी अपनी!
दोनों लड़कियों ने अपनी सलवारें उतार दी।

दोनों लड़कियों को मैंने बेड पे अगल बगल लिटा दिया और बारी बारी से दोनों की चूत चाटने लगा।
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इतने में मंजू भी किचन से ड्रिंक्स का सामान ले आई।
जब उसने देखा तो बोली- अरे प्रोफेसर साहब, आप तो शुरू भी हो गए!
मैंने कहा- इनके कमसिन बदन देख कर खुद पर काबू नहीं रख सका।

उसके बाद मैंने उन दोनों लड़कियों को जाने को बोल दिया, दोनों ने अपने कपड़े पहने और चली गई।

उनके जाने के बाद मैं और प्रोफेसर मंजू सिंह बैठ गए और उसने खुद दो पेग बनाए, एक खुद लिया दूसरा मुझे दिया।
चीयर्स कह कर हमने एक एक घूंट भरी।

मैंने कहा- मंजू अब तो हम दोनों ही हैं, अब ये साड़ी तो निकाल दो।
वो बोली- सब्र करो प्रोफेसर साहब, साड़ी क्या सब निकाल दूँगी, आप बस आराम से बैठो, आगे का सारा काम मेरा है।

बातें करते करते करीब 11 बज गए, हम दोनों करीब 3-4 पेग तो पी ही चुके थे, दोनों को पूरा सुरूर था।

मैंने कहा- मंजू अब यार सब्र नहीं होता, मैं तुम्हें नंगी देखना चाहता हूँ, उतार फेंको ये कपड़े।

तो मंजू उठी और उठ कर आकर मेरी गोद में बैठ गई, उसका आँचल ढलक गया, गोल गोरे बूब्स का खूबसूरत क्लीवेज बिल्कुल मेरी आँखों के सामने, मेरे होंठों के पास था।

मैंने उसके बोबे का जो हिस्सा मुझे दिख रहा था, उसे अपने दाँतों से पकड़ कर काट लिया।
मंजू के मुंह से एक हल्की सी सिसकारी ‘इस्स’ करके निकली। उसकी सिसकारी ने जैसे मेरे लंड को झिंझोड़ के रख दिया।

‘काटो मत यार!’ वो नशीली आवाज़ में बोली तो मैंने उसके बोबे का वही हिस्सा मुंह में लेकर चूस लिया।
इस बार उसकी सिसकारी ‘इस्स्स’ करके और भी लंबी हो गई।

मैंने अपने गिलास रखा और और अपने हाथ से उसका बोबा पकड़ लिया, वो मंजू ने भी अपना गिलास रख दिया और मेरे सर को अपने सीने से लगा कर अपने दोनों बोबे मेरे मुंह पर गड़ा दिये।

उसके ब्लाउज़ और ब्रा के ऊपर से ही मैंने उसके बोबों को अपने दाँतो से काटा, इस से उसे दर्द भी नहीं हुआ और मुझे बोबों पर काटने का मज़ा भी पूरा आया।

प्रोफेसर मंजू अपने दोनों बोबे मेरे मुंह पर रगड़ रही थी, जैसे मुझे अपने दोनों बोबों का भरपूर मज़ा देना चाहती हो।

फिर अचानक से उठ कर खड़ी हो गई, थोड़ी मस्तानी चाल चल कर एक शराबी की एक्टिंग करते हुये उसने अपनी साड़ी का पल्लू झुलाते हुये पीछे गिरा दिया, फिर एक एक करके साड़ी के चुन्नट अपनी कमर से निकाले और फिर सारी साड़ी ही निकाल दी।

मैंने भी अपनी शर्ट उतार दी।

फिर उसने अपने ब्लाउज़ का एक हुक खोला और झुक कर अपने क्लीवेज के दर्शन करवाए, दोनों हाथों से अपने दोनों बूब्स पकड़े, दबाये, गोल गोल घुमाए, जैसे मुझे ललचा रही हो, फिर दूसरा बटन, फिर तीसरा बटन, और सभी बटन खोल दिये।
फिर आ कर मेरी गोद में बैठ गई, मेरे दोनों हाथ पकड़े और अपने दोनों बोबे मेरे हाथों में पकड़ा दिये और खुद दबवाए।

क्या नज़ारा था!

और अपनी गांड को मेरे लंड पे घिसाया। लंड तो पहले से ही तना पड़ा था। मेरी तो इच्छा हो रही थी, के अभी साली को घोड़ी बनाऊँ और ऐसे ही चोद डालूँ।
मगर उसके दिमाग में कुछ और ही था।

मेरे हाथों से अपने बोबे छुड़वा कर वो उठ खड़ी हुई, और अपने पेटीकोट का नाड़ा उसने मेरे दाँतो में रखा, मैंने दाँत दबा कर बंद कर लिए, वो पीछे को हटी और उसके पेटीकोट का नाड़ा खुद ही खिंच कर खुल गया।

नाड़ा खुलते ही पेटीकोट नीचे गिर गया और उसकी संगमरमरी, चिकनी, गोरी टाँगें मेरी आँखों के सामने नंगी हो गई।

मैंने भी अपनी पैंट और बनियान उतार दी और सिर्फ चड्डी में ही, अपने चारों पाँव पर चल कर उसके पास पहुंचा और कुत्ते की तरह अपनी जीभ से उसकी जांघें चाटने लगा।

उसको भी मज़ा आया और वो मेरी तरफ घूमी और उसने मेरा चेहरा पकड़ कर अपनी चूत से लगाया।
मैं उसकी पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को चाटने लगे, अब जब चूत पे जीभ फिरी तो वो गुदगुदी से खिलखिला उठी और घूम कर मेरी तरफ पीठ कर ली।

मगर मैंने चाटना नहीं छोड़ा, उसकी चूत दूसरी तरफ घूम गई तो उसकी गांड मेरे सामने आ गई। मैं उसके चूतड़ चाटने लगा, उसकी जांघों के पिछली तरफ सारी टाँगें मैं चाट गया और उसकी गांड के अंदर मुंह घुसा कर उसकी गांड के छेद को भी चाटना चाह रहा था।
जब गांड में भी उसे गुदगुदी होने लगी, तो मुझसे थोड़ा दूर हट गई, मगर मैं कुत्ते की तरह फिर उसके पीछे पीछे चला गया।
जहां भी वो जाती, मैं अपने चारों पांव पर उसका पीछा कर रहा था और घूम फिर कर वो बेड पे जा गिरी।

मैं भी उसके पीछे पीछे बेड पर जा चढ़ा- अब सब्र नहीं होता, मंजू, अब तो मुझे तुम्हारा पूर्ण समर्पण चाहिए, अब तो दे दो मुझे।
मंजू बोली- अब सब्र मुझसे भी नहीं हो रहा, तुम्हारे नीचे ही जब लेट गई हूँ, तो और बोलो तुम्हें क्या चाहिए, सब तुम्हें समर्पित कर दिया, सब तुम्हारा है।

मैंने मंजू को अपनी बाहों में भर लिया, और जैसे ही उसके होंठ चूमने को नीचे झुका, वो भी थोड़ा ऊपर को उठी और उसने खुद अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिया। होंठों से होंठ क्या मिले, मैं चूस गया उसके दोनों होंठों को, इतना जोश भर गया मेरे अंदर कि दिल कर रहा था कि चबा के खा जाऊँ इस औरत को।

उसके होंठों पे लगी सारी लिपस्टिक मैं चाट गया, खा गया।
मगर साली के होंठ थे ही बहुत टेस्टी, जब होंठ से दिल न भरा तो मैंने उससे कहा- प्रोफेसर साहिबा, अपनी जीभ मेरे मुंह में डालो, मुझे तुम्हारी जीभ चूसनी है।

तो उसने मुझे अपनी लंबी सारी जीभ निकाल के दी, मगर जब मैंने उसे चूसने के लिए अपने मुंह में लेना चाहा तो मंजू ने शरारत की और अपनी जीभ वापिस अपने मुंह में ले ली।
मैं उसकी इस भोली अदा पर हंस दिया।

मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे तो उसने अपना मुंह खोला और अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी।
मैंने भी उसकी जीभ को अपने दोनों होंठों में जकड़ लिया और अंदर की तरफ खींच खींच कर चूसा।

वो अपनी जीभ से मेरे मुंह के अंदर मेरी जीभ को चाट रही थी, मैं भी उसकी जीभ को चाट रहा था।

फिर उसने अपनी जीभ पीछे की तो मैंने अपनी जीभ आगे बढ़ा दी, और इस तरह अब मेरी जीभ उसकी मुंह में चली गई, उसने अपने खूबसूरत दाँतो से मेरी जीभ पकड़ी और फिर अपने मुंह में मेरी जीभ को अपनी जीभ से चाटने लगी।

जितना उसके तीखे दाँत मेरी जीभ पर चुभ रहे थे, उतना ही मज़ा मुझे उसकी नर्म जीभ से अपनी जीभ को चटवाने में आ रहा था।
दोनों ने बारी बारी खूब एक दूसरे की जीभें चूसी।

इसी चूसा चुसई के दौरान मैंने उसके दोनों बोबे पकड़ कर खूब मसले, उसके ब्रा की हुक खोली और उसकी ब्रा उतार दी।
फिर थोड़ा पीछे हट कर मैंने उसके खूबसूरत बूब्स को देखा- बिल्कुल गोल, चिकने, दूध से सफ़ेद, हल्के भूरे निप्पल वाले बोबे।

एक सुंदर स्त्री के बदन का सबसे सुंदर हिस्सा।
क्योंकि मर्द सबसे पहले किसी औरत के बोबे ही देखते हैं, शक्ल दूसरे नंबर पे आती है।
मैंने अपने हाथों में उसके दोनों बोबे पकड़े।

‘क्या देख रहे हो?’ मंजू ने पूछा।
मैंने कहा- जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था न उस दिन लाल साड़ी में, उस दिन सोचा था, कितने सुंदर, उन्नत स्तन हैं तुम्हारे! कितना खुशनसीब होगा वो आदमी, जो इन्हें दबाता होगा, इन्हे चूसता होगा।

वो बोली- फिलहाल तो वो खुशनसीब तुम हो, तुम्हारे हाथ में हैं, चूसो, चाटो, खेलो, जो मर्ज़ी करो। मैंने उसका एक निपल अपने मुंह में लेकर चूसा। अब शादी को इतने साल हो चुके थे, तो पता था कैसे चूसो के औरत की सिसकी
निकल जाए। वही हुआ, मैं चूसता रहा और वो सिसकारियाँ भरने लगी। बहुत चूसा उसके बोबों को

मैं फिर बोबों से नीचे पेट पर आ गया तो उसने मेरा सर पकड़ लिया- यहाँ नहीं, यहाँ मुझे बहुत गुदगुदी होती है।
यही तो मैं जानना चाहता था कि ये साली तड़पती कहाँ से है।

मैंने फिर भी उसके पेट और कमर पे चूमा, अपनी जीभ से चाटा तो वो तड़प उठी और मेरा सर पकड़ के पीछे कर दिया।
मगर मैंने उसके दोनों हाथ पकड़े और अपना मुंह फिर से उसकी कमर और इर्द गिर्द चूमने चाटने में लगा दिया।

वो गुदगुदी से तड़प उठी, ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी- नहीं वरिंदर जी, नहीं, मत करो यार, आ… नहीं… बस करो… आह!

लेकिन मैं कहाँ हटने वाला था, मैं तो उसे और तड़पाना चाहता था।
मगर इतना भी नहीं… तो उसकी बात मान कर मैं थोड़ा और नीचे चला गया और उसकी पेंटी को नीचे उतारा, पेंटी के नीचे बिल्कुल साफ की हुई बाल रहित सफ़ेद रंग की छोटी सी चूत!

मैंने अपना पूरा मुंह खोला और उसकी सारी चूत को ही अपने मुंह में ले लिया, वो थोड़ा सा अकड़ गई।
उसके बाद अपनी जीभ से मैंने उसकी चूत की दरार को टटोल कर देखा और अपनी जीभ की नोक उसकी चूत की दरार में घुमाई।

उसने फिर से मेरा सर पकड़ लिया- ओह वरिंदर, जानते हो, मुझे इसे चटवाना बहुत अच्छा लगता है, सेक्स चाहे रोज़ न मिले मगर रोज़ कोई इसे चाटने वाला मिल जाए, बस यही बहुत है।

मैं चुपचाप चाटता रहा… फिर उसकी दोनों टाँगें खोल कर अपना मुंह उसकी दोनों जांघों के बीच में फंसा दिया, अब मेरी जीभ उसकी भगनासा पर नहीं बल्कि चूत के सुराख पर थी जिसमें से रसीला स्राव आ रहा था।

मैं उसकी सारी चूत चाट गया। मंजू भी अपने हिसाब से मेरा सर घुमा कर या अपनी चूत उठा कर अपनी मर्ज़ी से मुझसे अपनी चूत चटवा रही थी।

मुझे तो बस चाटने का आनन्द आ रहा था, मगर वो तो पूरी तरह से उचक उचक कर मज़े ले रही थी, कभी अपने बोबे खुद दबाती, कभी सिरहाने पर, चादर पर मुट्ठियाँ भींचती।
बोबों पर दोनों निपल सख्त हो रहे थे।

मैंने उससे पूछा- क्या ऐसे ही झड़ना चाहोगी, या अपना लंड डाल कर पानी निकालूँ तुम्हारा?
वो बोली- नहीं, अभी तो ऐसे ही चलने दे, एक बार हो जाए, उसके बाद तुम जो मर्ज़ी करना।

मुझे पता था कि यह ज़्यादा देर नहीं टिक पाएगी, मैंने पूरे मन से उसकी चूत चाटी और 2 मिनट में ही उसको तड़पा दिया।

अपनी चूत को उसने मेरे मुंह से रगड़ दिया, मेरे सर के बाल खींच दिये, कभी कमर नीचे को करती कभी कमर उचकाती, और सिर्फ ‘ऊह… आह…’ ही बोलती रही और फिर शांत हो गई।
मेरे चेहरे के आस पास उसकी जांघों की पकड़ ढीली पड़ गई।

मैं फिर भी चाटता रहा, तो उसने मेरा सर हटा दिया।
मैंने उस से पूछा- मैं डालूँ क्या?
वो बोली- अब तुम जो चाहो कर लो।

मैंने उसकी टाँगें खोली, अपना लंड उसकी चूत पे सेट किया।
वो शांत लेटी सब देखती रही और घप्प से अपना लंड मैंने उसकी चूत में दाखिल करवा दिया।

मुझे पता था कि जब किसी पराई औरत के पास जाओ तो अपनी तैयारी करके जाना चाहिए, इसी लिए मैं पहले से कुछ खा कर आया, था, ताकि कहीं जोश में जल्दी न झड़ जाऊँ।

मैंने धीरे से शुरुआत की उसके बदन को सहलाते हुये, चूमते चाटते हुये, मैं उसे बहुत ही आराम से चोद रहा था।

वो बोली- घर पे भी इतने ही आराम से करते हो?
मैंने कहा- इस से भी ज़्यादा स्लो, ताकि मज़ा ही मज़ा आता रहे।

बेशक उसका इतना मन नहीं था क्योंकि उसका पानी तो छूट चुका था, मगर फिर भी वो चूमा चाटी और हर काम में मेरा साथ दे रही थी।

स्लो शुरू करके मैंने थोड़ी से स्पीड बढ़ाई, मगर ज़्यादा तेज़ी से नहीं किया।
जब 3-4 मिनट हो गए उसकी चूत में लंड घिसते को तो मुझे लगा जैसे उसकी चूत फिर से गीली होने लगी है, मैंने पूछा- तुम फिर से पानी छोड़ने लगी हो क्या?

वो बोली- जब मर्द का तना हुआ लंड औरत के अंदर जाता है न, तो अगर मूड न भी हो तो ये कामिनी अपने आप पानी पानी हो जाती है।

कह कर वो हंसी।
मैंने उसको अपनी बाहों में कस कर पकड़ लिया, उसके दोनों बूब्स मेरे सीने से चिपके पड़े थे, पतला पेट मेरे पेट के नीचे दबा पड़ा था और उसकी टाइट चूत अपना पूरा मुंह खोल कर मेरे लंड को चूस रही थी।

‘प्रोफेसर मंजू सिंह, तुम बहुत सेक्सी हो, जितनी सुंदर कपड़ों में दिखती हो, नंगी तो उससे भी ज़्यादा सेक्सी लगती हो।’
वो बोली- मैं जानती हूँ, हर मर्द यही सोचता है, मेरे बारे में!

करीब 5 मिनट की चुदाई के बाद मैंने कहा- घोड़ी बनो, मुझे तुम्हें पीछे से चोदना है।
मैं उसके ऊपर से नीचे उतरा तो वो वही पे करवट लेकर घोड़ी बन गई।

मैंने पहले अपना लंड उसकी गांड पे रखा।
‘ओय, यहाँ नहीं!’ वो बोली।
‘क्यों गांड नहीं मरवाती?’ मैंने पूछा।
वो बोली- कभी नहीं, मुझे ये सब पसंद नहीं।

अपना लंड मैंने उसकी चूत पे रखा तो उसने अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को मेरे लंड पे सेट किया।
मैंने धकेला और लंड अंदर घुस गया।

मैंने कहा- मंजू, तुम्हारी गांड भी बहुत खूबसूरत है, इसे भी चोदने का दिल कर रहा है।
वो बोली- इसके लिए सॉरी, जहां डाला है यहाँ चाहे सारी रात चोदते रहो, सारी रात मुंह में डाल कर रखो, मुझे कोई प्रोब्लेम नहीं, मगर मैं पीछे नहीं करवाती।

उसकी गांड पर मैंने थूका और अपनी एक उंगली उसकी गांड में डालने की कोशिश की, तो मंजू बोली- रहने दो यार, पीछे कुछ नहीं, प्लीज़ माना करो बात को।

मैंने सॉरी बोला और उसकी गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर अपना ध्यान लगाया।

जब मैं पीछे से लाकर अपनी कमर उसकी गांड पर मारता तो उसके चूतड़ों में लहरें उठती, ठप्प ठप्प ठप्प की आवाज़ आ रही थी और घोड़ी बना कर उसकी चूत मुझे लग भी टाइट रही थी।

मगर एक बात थी, पानी बहुत छोड़ रही थी वो। हर बार पिचक से मेरा लंड उसकी चूत में घुस जाता था।
कोई 5-6 मिनट मैंने उसको घोड़ी बना के चोद लिया तो उसे अपने ऊपर आने को कहा।

मैं नीचे लेटा तो वो मेरे ऊपर आकर बैठ गई, मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत पर रख कर नीचे को बैठ गई और मेरा सारा लंड अपनी चूत में निगल गई।घुटनों के बल बैठ कर वो ऊपर नीचे होने लगी और मेरा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगा।
मुझे भी थोड़ा आराम मिला।

उसके दोनों गोल गोल बोबे मेरे मुंह के ऊपर झूल रहे थे, मैं उनसे खेलने लगा। कभी किसी को चूसता तो कभी किसी को काटता।

मगर जब औरत ऊपर आ जाती है तो तब मर्द ज़्यादा देर टिक नहीं पाता है। मैंने 2 मिनट बाद ही उससे कह दिया- मंजू, बहुत टाइट चूत है तेरी मादरचोद, मेरा तो माल छूटने वाला है, और ज़ोर से कर भैंण की लौड़ी!

वो बिना मेरी गालियों की परवाह करे ज़ोर ज़ोर से करने लगी।
एक मिनट भी नहीं लगा और मेरे लंड से वीर्य के फुव्वारे छूट पड़े।
मगर उसने बाहर नहीं निकाला, सारा वीर्य उसकी चूत में ही छूटा।

जब मैं शांत हुआ तो वो भी नीचे उतर गई और मेरी बगल में ही लेट गई।

‘क्या खा कर आए थे जो इतना टाइम लगाया?’ उसने पूछा।
मैंने कहा- थोड़ी सी अफीम खाई थी।
‘तभी मुझे लगा, 45 पार करके भी इतना कड़क, इतने टाइम तक!’
मैंने कहा- बिल्कुल, तुम्हारे जैसे शानदार औरत चोदने को मिले और 2 मिनट में ही पानी निकल जाए, तो मज़ा नहीं आता, तुम्हें तो अगर सारी रात चोदा जाए, तो मन न भरे।

‘आशिक ही हो गए क्या?’ वो बोली।
मैंने कहा- आशिक नहीं दीवाना, तुम हो ही इतनी सुंदर और सेक्सी, तुम्हारी जैसी शानदार औरत को तो मैंने आज तक नहीं चोदा था, आज पहली बार तुम्हें चोद कर यह आनन्द हासिल किया है।

वो अपनी तारीफ सुन कर हंस पड़ी।

‘मंजू!’ मैंने कहा।
‘हूँ?’ वो बोली।
‘अभी मेरा दिल नहीं भरा, अभी कम से कम दो बार और चोदूँगा तुम्हें!’ मैंने कहा।

वो बोली- आज तो अपनी बात खुल गई, जब तक यहाँ हो जितना मन भर सकते हो, जितना कर सकते हो कर लो मेरे साथ, बाद
में मत कहना कि मेरी मेहमानदारी में कोई कमी रह गई।

उसकी बात सुन कर मैंने मंजू के होंठ चूम लिए।
सच में इतना प्यार तो बीवी नहीं देती, जितने प्यार से इसने मेरी सेवा की थी।

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