साइबर कैफे में चुद गई – Hindi Sex Story

गाँव की मस्त माल मेरा नाम सुहानी है। मेरी उम्र 22 साल है, रंग गोरा है। गोरे बदन पर सारे लड़के फ़िदा है। बुड्ढों के भी लंड में मुझे देखकर जान आ जाती है। वो भी अपना खड़ा कर लेते है। जवान मर्दो की तो बात ही न करो वो तो लंड को बम्बू बना लेते है। अपने पैजामे को तंबू बना लेते हैं। आशिको की लाइनों को देखकर मेरा घर से बाहर जाने का मन ही नहीं करता था।

जिसको देखो वही मेरे इस 34, 30, 36 के फिगर पर फ़िदा था। भरी जवानी का रस हर कोई निचोड़ना चाहता था। लेकिन मै भी कोई Delhi Ki Randi तो थी नही जो हर किसी के हाथों बिक जाऊं। लेकिन कुछ मजबूरी के कारण मुझे अपनी चूत का बलिदान देना पड़ा। दोस्तों अब मै अपनी कहानीं पर आती हूँ। एक साल पहले मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई थी। घर का सारा काम मुझे ही देखना पड़ रहा था।

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जहां भी मै जाती थी। लोग अपनी नजर मुझपे ही गड़ाए रहते थे। मै तो कभी कभी परेशान हो जाती थी। कुछ ही दिनों में मैंने भी अपनी आदत बदली। मैंने भी सबको लाइन देना शुरू क़िया। हर किसी की नजर में बस हवस ही नजर आने लगी। सभी मुझे चोदना चाहते थे। मुझे राशन कार्ड बनवाना था।

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क्योंकि सब जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही थी। एक भाई था मेरा वो भी छोटा था। मैं एक साइबर कैफे पर गई। मैने उससे अपना राशन कार्ड बनाने को कहा। लेकिन वो तो मुझे घूरे जा रहा था। कुछ देर बाद उसने कहा- “कल बना दूंगा”

मेरे गाँव में केवल एक ही साइबर कैफे था। उस पर जो लड़का रहता था उसका नाम अरुण था। वो बहुत ही जबरदस्त पर्सनालिटी का लगता था। बड़ा भाव खा रहा था। दूसरे दिन भी मैं गई। लेकिन वो कुछ चाह रहा था मुझसे। उसकी नजर बता रही थी की वो मुझे चोदना चाहता है।

मैं भी काफी दिनों तक चुदी नही थी। मैंने भी अब अपने लटके झटके दिखाकर उससे काम कराना चाहा। मैंने अपना दुपट्टा गले से हटा लिया। मेरे गहरे कटिंग की समीज में चूंचिया दिखने लगी। वो अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर मेरे जाल में फसता जा रहा था।

मैं- “क्यों ऐसा क्या देख लिया??? इतने दिनों से आती हूँ तुम्हारे यहां। आज ही तुम्हे मै गजब की लगी”.

अरुण- “पहले भी लगतीं थी लेकिन आज कुछ ज्यादा ही लग रही हो”.

मैंने पूछा- “कितने दिन लग सकते है राशन कार्ड बनने में”.

अरुण- “जब तक मेरा काम नही हो जाता”.
मै- “तुम्हारा क्या काम है?”

अरुण उस दिन अकेला ही था। उसने मेरा हाथ पकड़ा। और मुझे कस कर दबाते हुए कहने लगा- “बस एक मै तुम्हारी चूत को देखकर चोदना चाहता हूँ। तुम्हारे इस मम्मे को दबाकर पीना चाहता हूँ। बदले में मै तुम्हारे घर राशन कार्ड बनवाकर पहुचा दूंगा” तुम्हे बार बार मेरे यहां आने की जरूरत नहीं।

मै भी सोच में पड गयी। एक चूत के बदले न पैसा देना होगा न ही बार बार दौड़ना पडेगा। लेकिन मुझे डायरेक्ट बात भी नहीं करनी थी। मैने झूठ मूठ का घबराने का नाटक किया।

मै- “ये..ये तुम कैसी बातें कर रहे हो। तुम्हे बात करनी भी नहीं आती अपने ग्राहक से कैसे बात करते हैं.”

अरुण- “देखो मेरी कोई गलती नहीं है। तुम्हारी जवानी ही ऐसी है कि मैं अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ मेरा मन तुम्हे चोदने को कर रहा था तो मैंने कह दिया”.

मै- ये बात घर वालो को पता चल गई तो क्या होगा मालूम है तुम्हे??

अरुण- “घर वालो को बता के थोड़ी न तुम्हे चुदवाना है”.

मै- ठीक है लेकिन बहुत आराम से चोदना। मुझे ज्यादा दर्द नहीं होना चाहिए।

अरुण को हरा सिग्नल मिलते ही कमल के फूल जैसे खिल गया। फिर मेरे से कहने लगा।अरुण- “मेरी जान मई तुम्हे बहुत आराम से चोदूंगा। थोड़ा सा भी दर्द नहीं होगा। बस तुम मेरा साथ देना। आज मैं तुम्हे जन्नत का सैर कराऊंगा”.

कंप्यूटर पर टिक… टिक.. टिक… की टाइपिंग कर रहा था। टाइपिंग को बंद करते हुए उसने मेरी तरफ देखा। मैंने अपना फॉर्म उसके सामने रख दिया। उसने मेरे फॉर्म को दूसरी तरफ रख दिया। उसके पैर के ऊपर कई सारे पन्ने रखे हुए थे। उन सबको हटा दिया। उसका लंड पैंट में तना हुआ दिखाई दे रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

उसने एक पल की भी देरी न करते हुए मुझे अपने लंड पर बिठा लिया। वो मेरा फॉर्म भर भर कर मुझे किस करता रहा। उसका लंड तेजी से खड़ा हो रहा था। मेरी गांड में उसका लंड चुभ रहा था। अरुण ने चुम्मे से शुरुवात कर दी थी। मै भी मूड बना चुकी थी। मेरा काम आज लगने वाला था।

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उसका दरवाजा शीशे का था तो सबकुछ बाहर दिख रहा था। तभी दुकान पर एक अंकल जी आ गए। मै झट से उसके ऊपर से हटकर कुर्सी पर बैठ गयी। मेरा दिल धक् धक् करने लगा। कुछ देर बाद अंकल जी चले गए। लेकिन डर के मारे दुबारा कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

दूसरे दिन रविवार था। हम लोग दुसरे दिन चुदवाने का वादा करके चली आयी। उस दिन वो अपनी दुकान बंद रखता था। वो अगले दिन दुकान को खोलकर सिर्फ मेरी चुदाई ही करना चाहता था। मुझे याद आया तो. मैंने कहा- “कल रविवार है। तुम्हारी दुकान बंद रहेगी”.

अरुण- “जिसको चोदने को इतनी खूबसूरत लड़की मिल रही है, उसके लिए एक तो क्या मैं कई रविवार को अपनी दुकान खोल सकता हूँ” मेरी जान कल दोपहर 12 बजे तक मैं तुम्हे चोदने के लिए आ जाऊँगा।

मै- “ठीक है मैं भी आ जाऊंगी”.

इतना कहकर मै अपने घर चली आयी। मै चुदने की ख़ुशी में पागल हो रही थी। मै मन ही मन सोचने लगी “बाप रे कल इतनी कड़ाके की गर्मी में ये दोपहर में चोदेगा मै तो मर ही जाऊंगी। फिर भी दूसरे दिन मै उसके दुकान के सामने जा पहुची। वो बाहर ही खड़ा मेरा इंतजार कर रहा था।

उस दिन अरुण बड़ा स्मार्ट लग रहा था। मै तो टाइम से पहुच गई थी। लेकिन वो तो मुझसे पहले ही इतने धूप मे चुका था। तेज की धूप में कोई घर के बाहर नहीं दिख रहा था। सारे लोग अपने अपने घरों में थे। मै जल्दी से उसके दुकान में घुसी। उसने अंदर से दरवाजा बंद किया। मुझे पकड़कर कहने लगा।

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अरुण- “रात भर मुठ मार मार कर काम चलाया है। अब तो मुझे करवा दे दर्शन अपने चूत का”.

रजनी कान्त के जैसे अरुण ने कुर्सी घुमाकर बैठ गया। मै भी उसकी गोद में जाकर बैठ गई। उसने मेरे बालो को पकड़ कर खींच लिया। मेरा सर ऊपर उठाकर। उसने मेरे होंठो पर उँगलियाँ घुमाते हुए किस करने लगा। मेरी नाजुक कोमल पंखुडियो जैसी होंठ पर अपना होंठ लगाकर चूसने लगा।

मेरे होंठो में खूब ढेर सारा रस भरा हुआ था। वो चूस चूस कर पीने लगा। कभी ऊपर के होंठो को चूसता तो कभी नीचे के। मैं भी उसका साथ दे रही थी। उसके कान पर मै अपना हाथ रखे दबाये हुई थी। चुम्बन कार्य जारी रहा।

उसने अपना सिस्टम ऑन किया। और नेट से ऑनलाइन ब्लू फिल्म चला दिया। हम दोनों देख देख कर गरम होने लगे। वो मुझे खड़ा होकर सहलाने लगा। एक एक अंग को छूकर उसमे बिजली दौड़ा रहा था। मै गर्म हो रही थी।

मै- “अरुण ऐसा न करो कुछ कुछ होता है”.

अरुण- “क्या होता है”.

मै- “पता नही क्यों मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगता है। मेरी साँसे गर्म हो रही है”.

अरुण- “मेरी अनारकली तुम गर्म हो रही हो। तुम्हे अभी चोदने में बहुत मजा आएगा”.

मै- ” तो चोद डालो अब मुझे मजा आये”.

उसने पास में पड़े लंबे से बेंच पर लिटा दिया.

अरुण- “थोड़ा तड़पाओ खुद को तो ज्यादा मजा आता है”.

इतना कहकर वो मेरे पैर से किस करता हुआ गले तक आ पहुचा। अपने दोनों हाथों में मेरी मुसम्मियों को भरकर दबाने लगा। मै जोर जोर से“……अई…अई….अई……अ ….इसस्स्स्स्स्…….उहह्ह्ह्ह…..ओह्ह्ह्हह्ह….” की सिसकारियां भर रही थी। वो मेरे गले को कुत्ते की तरह चाट रहा था।

मै- “अरुण तू आज गली का देशी कुत्ता लग रहा है”.

अरुण- “तू भी अभी मेरी कुतिया बनेगी। आज ये डॉगी तुझे डॉगी स्टाइल में ही चोदेगा”.

इतना कहकर उसने मेरी समीज को निकाल दिया। मै उसके सामने अपने बड़े बड़े चूंचियो को हिला हिला कर खेलने लगी। लटकते हुए मुसम्मियों को देखकर उसने आकर थाम लिया। उसने मेरे बूब्स को अपने दोनों हाथों में लेकर उछाल कर खेलते हुए दबाने लगा। मेरे बूब्स फुटबाल की तरह उछल रहे थे। “”

मै उसके गले को पकडे हुए खड़ी थी। उसने कुर्सी पर बैठ कर मेरे बूब्स पकड़ कर अपनी तरफ खींचा। मै उसके तरफ बढ़ी। उसने मेरी ब्रा का हुक खोलकर निकाल दिया। अरुण मेरी मक्खन जैसी मुलायम चूंचियो को देखते ही अपनी जीभ लपलपाने लगा। उसने मेरे बूब्स को अपने मुह में भर लिया।

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गोरे गोरे मम्मो पर काले रंग का निप्पल बहुत ही रोमांचक लग रहा था। उसने निप्पलों को पीना शुरू किया। मै खड़े खड़े मदहोश होती जा रही थी। उसका सर पकड़ कर चूंचियो में दबा रही थी। मेरे बूब्स को जोर जोर से पीते हुए उसने मुझे खूब गर्म किया। निप्पल को होंठो से खींच खींच कर दांतो से काट रहा था।

मेरी जान निकल रही थी। मै जोर जोर से “..अहहह्ह्ह्हह स्सीईईई इ….अअअअ अ….आहा …हा हा हा” की आवाज निकाल रही थी। मैं चुदने को बेचैन होने लगी। खूब दबा दबा कर मेरे चुच्चो को टाइट कर दिया। निप्पल कडा होकर खड़ा हो गया। कुछ देर तक पीने के बाद उसने मेरे मम्मो को छोड़ दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

धीरे धीरे अपना मुह नीचे की तरफ लाकर मेरे पेट पर किस कर रहा था। अरुण अपनी जीभ मेरी नाभि में डाल कर चाटने लगा। उसने कुछ देर तक मेरी नाभि को पीकर मुझे बहुत तड़पाया। उसने सलवार का नाडा खींचकर एक झटके में खोल कर निकाल दिया। सलवार के नीचे गिरते ही मैं सिर्फ पैंटी में हो गयी।

उसके सामने मुझे पैंटी में शर्म आ रही थी। मैं अपना सर नीचे करके चूत को हाथ से ढके हुए थी। अरुण- “क्या बात है?? गजब की माल तो तू अब दिख रही है” उसने पीछे से आकर मेरी चूत पर रखे हाथो पर अपना हाथ भी रख दिया। मेरे हाथों को हटाकर उसने अपना हाथ मेरी पैंटी में डाल दिया।

चूत के दोनों पंखुडियो के बीच में अपनी उंगली घुसाने लगा। उसने झुककर मेरी चूत के दर्शन किया। अपनी अंगुली घुसा घुसा कर बाहर निकाल रहा था। कुछ देर ऐसा करने के बाद उसने मेरी चूत के छोटे छोटे बालो पर हाथ फेरने लगा।

उसने कहा- “अब और न तड़पाओ मुझे अब अपनी चूत के दर्शन अच्छे से करा दो” उसने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया।

पैंटी को निकाल कर उसने मेरी टांगो को फैला दिया। मै टांग फैलाये बैठी हुई थी। कुर्सी की लकड़िया गड रही थी। मैं नीचे ही फर्श पर ही लेट गई। अरुण ने मेरी दोनों टांगो को फैलाकर उसने मेरी चूत के दर्शन कर रहा था। मेरी रसीली चूत को देखते ही वो उछल पड़ा। जल्दी से अपना मुह मेरी चूत पर लगाते हुए चाट रहा था।

चप…चप की चाटने की आवाज आ रही थी। लग रहा था जैसे कोई कुत्ता कुछ चाट रहा हो। चूत के दाने को जीभ से रगड़ रगड़ कर होंठो से खींच रहा था। मैं बहुत ही आनंदित हो उठी। चुदने की तड़प बढ़ती ही जा रही थी। कुछ देर तक चाटने के बाद उसने अपना पैंट अंडरवियर सहित निकाल दिया।

बाप रे!! उसके अंडरबियर के पीछे इतना बड़ा मोटा लंड छुपा होगा मैंने सोचा ही नहीं था। उसका लंड जितना मै सोच रही थी उससे भी ज्यादा मोटा निकला। सिकुड़े लंड पर जब वो बहुत लम्बा था तो खड़ा होने पर कितना बड़ा लंड होता ये सोच कर मेरी गांड फटी जा रही थी।

अरुण मुझे अपना लंड देते हुए कहा- “लो अब तुम मेरे लंड को आइसक्रीम की तरह चाट कर लॉलीपॉप की तरह चूसो”. मैंने उसके सिकुड़े हुए लंड को हाथो में लिया। उसका टोपा सच में आइसक्रीम की तरह मुलायम मुलायम लग रहा था। मैने जीभ लगाकर उसे चाटना शुरू किया।

वो धीरे धीरे लॉलीपॉप की डंडी की तरह टाइट होने लगा। उसका टोपा गुलाबी रंग का हो गया। मै उसे लॉलीपॉप की तरह अब चूसने लगी। उसके लंड को आगे पीछे करके उसे उत्तेजित कर दिया। अरुण चोदने को तड़पने लगा। उसने अपना लंड छुड़ा कर मुझे लिटा दिया।

उसने मेरी टांग फैलाकर 9″ का लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगा। मै भी उंगलियों से अपनी चूत मसल कर गरम हो रही थी। मेरी चूत आग की तरह धधक रही थी। लंड रगड़ना मुझपे भारी पड़ने लगा।

मैने उसे चूत में लंड घुसाने को कहा। अरुण मुझे तड़पाये ही जा रहा था। कुछ देर बाद उसने मेरी चूत से अपना लंड सटाकर घुसाने की कोशिश करने लगा।।

मेरी चूत में उसके लंड का टोपा घुस गया। मै जोर जोर से “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की चीख निकालने लगी। उसने मेरा मुह दबा लिया। और जोर का धक्का मार कर पूरा लंड मेरी चूत में घुसा दिया। मै दर्द से तड़प रही थी। लेकिन वो धका पेल अपना लंड पेल रहा था।

मै उसके गांड पर नाखून गड़ा रही थी। लेकिन उसे कुछ फर्क ही नही पड़ रहा था। वो बस चोदे ही जा रहा था। मैंने मेरे ऊपर घच घच कूदकर चुदाई कर रहा था। मुझे बहुत मजा आने लगा। मेरी चूत का दर्द आराम हुआ। मैंने भी चूत उठाकर चुदाई करवानी शुरू कर दी।

वो मेरी में अपना लंड जड़ तक पेल कर मजा ले रहा था। वो थक गया। उसने मुझे बेंच पर लिटाकर गांड के नीचे तकिया लगा दिया। मेरी चूत ऊपर उठ गई। वो खड़ा होकर मेरी चूत को फाडने लगा। मेरी चूत में घच्च घच्च की आवाज भरी पड़ी थी। आज सारी बाहर निकल रही थी।

अपनी कमर हिला हिला कर अरुण मेरी जबरदस्त चुदाई कर रहा था। आज पहली बार किसी ने मुझे ऐसे चोदा था। मुझे इस चुदाई से बड़ा आनंद मिल रहा था। मैं भी अपनी चूत उचका उचका कर चुदवाने लगी।

मेरी चूत की लगातार चुदाई से मै “….उंह उंह उंह हूँ.. हूँ… हूँ..हममममअहह्ह्ह्हह..अई…अई…अई…..” की आवाजो के साथ चुद रही थी।

मेरी चूत का कचरा बन गया। उसने मेरी चूत से लंड निकाल लिया। उसने अपना गीला लंड मुझे कुतिया बनाकर मेरी गांड की छेद पर लगा दिया। धक्का मार कर अपने लंड का टोपा मेरी गांड में घुसा दिया। मै जोर से“आआआअह्हह्हह ….. ईईईईईईई….ओह्ह्ह्. …अई. .अई..अई…..अई..मम्मी….” चिल्लाने लगी।

उसने धीरे धीरे अपना पूरा लंड घुसाकर मेरी गांड फाड़ डाली। मै तड़प तड़प कर गांड चुदाई करवा रही थी। गांड पर चट चट हाथ से मारते हुए अपना लंड घुसा घुसा कर निकाल रहा था।

अचानक से जोर जोर से मेरी गांड चोदने लगा। मै बहुत तेज तेज से “….उंह उंह उंह हूँ.. हूँ… हूँ..हमममम अहह्ह्ह्हह..अई…अई…अई…..” चिल्लाने लगी। उसने चुदाई रोक कर पूछा- “कहाँ गिराऊं अपना माल” मैंने उसका लंड अपने मुह में ले लिया।

उसने पूरा माल मुह में गिरा दिया। उसका गाढ़ा सफ़ेद माल पीकर मैंने चैन की सांस ली। उसके बाद मैंने अपना कागज पत्र लेकर चली आई। मै उस चुदाई को आज तक नही भूल पाई। आज भी मौक़ा मिलता ही उसके दुकान में ही सेक्स कर लेते है।

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